Lekhika Ranchi

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काजर की कोठरी--आचार्य देवकीनंदन खत्री


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इसी किस्म की बातें हो रही थीं कि लौंडी ने हरनंदन बाबू के आने की खबर दी। सुनते ही बाँदी घबराहट के साथ उठ खड़ी हुई और बीस-पच्चीस कदम आगे बढ़कर बड़ी मुहब्बत और खातिरदारी का बर्ताव दिखाती हुई उसी कोठरी के दरवाजे तक ले आई, जिसमें बैठकर अपनी माँ से बातें कर रही थी और जहाँ उसकी माँ सलाम करने की नीयत से खड़ी थी।

अस्तु, बाँदी की माँ ने हरनंदन बाबू को झुककर सलाम करने के बाद बाँदी से कहा, ‘बाँदी! आपको यहाँ मत बैठाओ जहाँ अक्सर लोग आते -जाते रहते हैं बल्कि ऊपर बँगले ही में ले जाओ क्योंकि वह आप ही के लायक है और आपको पसंद भी है।‘

इतना कहकर बाँदी की माँ हट गई और बाँदी ‘हाँ ऐसा ही करती हूँ’, कहकर हरनंदन बाबू को लिए ऊपरवाले उसी बँगले में चली गई जिसमें थोड़ी देर पहिले पारसनाथ बैठकर बाँदी के साथ ‘चारा-बदलोअल’ कर चुका था।

हरनंदन बाबू बड़ी इज्जत और जाहिरी मुहब्बत के साथ बैठाए गए और इसके बाद उन दोनों में यों बातचीत होने लगी-

बाँदी : कल तो आपने खूब छकाया! दो बजे तक मैं बराबर बैठी इंतजार करती रही, आखिर बड़ी मुश्किल से नींद आई, सो नींद में भी बराबर चौंकती रही।

हरनंदन : हाँ, एक ऐसा टेढ़ा काम आ पड़ा था कि मुझे कल बारह बजे रात तक बाबू जी ने अपने पास से उठने न दिया, उस समय और भी कई आदमी बैठे हुए थे।

बाँदी : तभी ऐसा हुआ! मैं भी यही सोच रही थी कि आप बिना किसी भारी सबब के वादाखिलाफी करनेवाले नहीं हैं।

हरनंदन : मैं अपने वादे का बहुत बड़ा खयाल रखता हूँ और किसी को यह कहने का मौका नहीं दिया चाहता कि हरनंदन वादे के सच्चे नहीं हैं।

बाँदी : इस बारे में तो तमाम जमाना आपकी तारीफ करता है। मुझे आप ऐसे सच्चे सर्दार की सोहबत का फख्र है। अभी कल मेरे यहाँ बी इमामीजान आई थीं। बात-ही-बात में उन्होंने मुझे कह ही तो दिया कि ‘हाँ बाँदी, अब तुम्हारा दिमाग आसमान के नीचे क्यों उतरने लगा! हरनंदन बाबू ऐसे सच्चे सर्दार को पाकर तुम जितना घमंड करो थोडा है!’ मैं समझ गई कि यह डाह से ऐसा कह रही है।

हरनंदन : (ताज्जुब की सूरत बनाकर) इमामीजान को मेरा हाल कैसे मालूम हुआ? क्या तुमने कह दिया था?

बाँदी : (जोर देकर) अजी नहीं, मैं भला क्यों कहने लगी थी? यह काम उसी दुष्ट पारसनाथ का है। उसी ने तुम्हें कई जगह बदनाम किया है। मैं तो जब भी उसकी सूरत देखती हूँ मारे गुस्से के आँखों में खून उतर आता है, यही जी चाहता है कि उसे कच्चा ही खा जाऊँ, मगर क्या करूँ, लाचार हूँ, तुम्हारे काम का खयाल करके रुक जाती हूँ। कल वह फिर मेरे यहाँ आया था, मैंने अपने क्रोध को बहुत रोका, मगर फिर भी जुबान चल ही पड़ी, बात ही बात में कई जली-कटी कह गई।

हरनंदन : लेकिन अगर उससे ऐसा ही सूखा बर्ताव रखोगी तो मेरा काम कैसे चलेगा?

बाँदी : आप ही के काम का खयाल तो मुझे उससे मिलने पर मजबूर करता है, अगर ऐसा न होता तो मैं उसकी वह दुर्गति करती कि वह भी जन्म-भर याद करता। मगर उसे आप पूरा बेहया समझिए, तुरंत ही मेरी दी हुई गालियों को बिलकुल भूल जाता है और खुशामदें करने लगता है। कल मैंने उसे विश्वास दिला दिया कि मुझसे और आप (हरनंदन) से लड़ाई हो गई और अब सुलह नहीं हो सकती, अब यकीन है कि दो-तीन दिन में आपका काम हो जाएगा।

हरनंदन : अरे हाँ, परसों उसी कमबख़्त की बदौलत एक बड़ी मजेदार बात हुई।

बाँदी : (और आगे खिसककर और ताज्जुब के साथ) क्या, क्या?

हरनंदन : उसी के सिखाने—पढ़ाने से परसों लालसिंह ने एक आदमी मेरे बाप के पास भेजा। उस समय जबकि-उस आदमी से और मेरे बाप से बातें हो रही थीं, इत्तिफाक से मैं भी वहाँ जा पहुँचा। यद्यपि मेरा इरादा तुरंत लौट पड़ने का था मगर मेरे बाप ने मुझे अपने पास बैठा लिया, लाचार उन दोनों की बातें सुनने लगा। उस आदमी ने लालसिंह की तरफ से मेरी बहुत-सी शिकायतें कीं और बात-बात में यही कहता रहा कि ‘हरनंदन बाबू तो बाँदी रंडी को रखे हुए हैं और दिन-रात उसी के यहाँ बैठे रहते हैं, ऐसे आदमी को हमारी लड़की के गायब हो जाने का भला क्या रंज होगा?’

मेरे पिता पहिले तो चुपचाप बैठे देर तक ऐसी बातें सुनते रहे, मगर जब उनको हद से ज्यादे गुस्सा चढ़ आया तब उस आदमी से डपटकर बोले, ”तुम जाकर लालसिंह को मेरी तरफ से कह दो कि अगर मेरा लड़का हरनंदन ऐयाश है तो तुम्हारे, बाप का क्या लेता है? तुम्हारी लड़की जाए जहन्नुम में और अब अगर वह मिल भी जाए तो मैं अपने लड़के की शादी उससे नहीं कर सकता।

जो नौजवान औरत इस तरह बहुत दिनों तक घर से निकलकर गायब रहे वह किसी भले आदमी के घर में ब्याहता बनकर रहने लायक नहीं रहती! अब सुन लो कि मेरे लड़के ने खुल्लमखुला बाँदी रंडी को रख लिया है और उसे ‘बहुत जल्दी यहाँ ले आवेगा ! बस तुम तुरंत यहाँ से चले जाओ, मैं तुम्हारा मुँह देखना नहीं चाहता !!”

इतना सुनते ही वह आदमी उठकर चला गया और तब मेरे बाप ने मुझसे कहा, ”बेटा ! अगर तुम अभी तक बाँदी से कुछ वास्ता न भी रखते थे। तो अब खुल्लमखुल्ला उसके पास आना-जाना शुरू कर दो और अगर तुम्हारी ख्वाहिश हो तो तुम उसे नौकर भी रख लो या यहाँ ले आओ। मैं उसके लिए पाँच सौ रुपए महीने का इलाका अलग कर दूँगा बल्कि थोड़े दिन बाद वह इलाका उसे लिख भी दूँगा, जिसमें वह हमेशा आराम और चैन से रहे। इसके अलावा और जो कुछ तुम्हारी इच्छा हो उसे दो, मैं तुम्हारा हाथ कभी न रोकूँगा–देखें तो सही लालसिंह हमारा क्या कर लेता है!!”

बाँदी : (बड प्यार से हरनंदन का पंजा पकड़कर) सच कहना ! क्या हकीकत में ऐसा हुआ?

हरनंदन : (बाँदी के सर पर हाथ रख के) तुम्हारे सर की कमस, भला मैं तुमसे झूठ बोलूँगा ! तुमसे क्या मैंने कभी और किसी से भी आज तक कोई बात भला झूठ कही है?

बाँदी : (खुशी से) नहीं -नहीं, इस बात को मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ कि आप कभी किसी से झूठ नहीं बोलते!

हरनंदन : और फिर इस बात का विश्वास तो और लोगों को भी थोड़ी ही देर में हो जाएगा क्योंकि आज मैं किसी से लुक-छिप के यहाँ नहीं आया हूँ बल्कि खुल्लमखुल्ला आया हूँ। मेरे साथ एक सिपाही और एक नौकर भी आया है जिन्हें मैं नीचे दरवाजे पर इसलिए छोड़ आया हूँ कि बिना मेरी मर्जी के किसी को ऊपर न आने दें।

बाँदी : (ताज्जुब से) हाँ !!

हरनंदन : (जोर देकर) हाँ ! और आज मैं यहाँ बहुत देर तक बैठूँगा, बल्कि तुम्हारा मुजरा भी सुनूँगा। डेरे पर मैं सभों से कह आया हूँ कि ‘मैं बाँदी के यहाँ जाता हूँ, अगर कोई जरूरत आ पड़े तो वहीं मुझे खबर देना।’ मैं तो बाप का हुक्म पाते ही इस तरफ को रवाना हुआ और यहाँ पहुँचकर बड़ी आजादी के साथ घूम रहा हूँ। आज से तुम मुझे अपना ही समझो और विश्वास रखो कि तुम बहुत जल्द अपने को किसी और ही रंग-ढंग में देखोगी।

बाँदी : (खुशी से हरनंदन के गले में हाथ डाल के) यह तो तुमने बड़ी खुशी की बात सुनाई! मगर रुपए-पैसे की मुझे कुछ भी चाह नहीं है, मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ रहने में खुश हूँ, चाहे तुम जिस तरह रखो।

हरनंदन : मुझे भी तुमसे ऐसी ही उम्मीद है। अब जहाँ तक जल्द हो सके तुम उस काम को ठीक करके पारसनाथ को जवाब दे दो और इस मकान को छोड़कर किसी दूसरे आलीशान मकान में रहने का बंदोबस्त करो। अब मुझे सरला का पता लगाने की कोई जरूरत तो नहीं रही, मगर फिर भी मैं अपने बाप को सच्चा किए बिना नहीं रह सकता जिसने मेहरबानी करके मुझे तुम्हारे साथ वास्ता रखने के लिए इतनी आजादी दे रखी है और तुम्हें भी इस बात का खयाल जरूर होना चाहिए। वे चाहते हैं कि सरला लालसिंह के घर पर पहुँच जाए और तब लालसिंह देखें कि हरनंदन सरला के साथ शादी न करके बाँदी के साथ कैसे मजे में जिंदगी बिता रहा है।

बाँदी : जरूर ऐसा होना चाहिए ! मैं आपसे वादा करती हूँ कि चार दिन के अंदर ही सरला का पता लगाके पारसनाथ का मुँह काला करूँगी!

हरनंदन : (बाँदी की पीठ पर हाथ फेरके) शाबाश !!

बाँदी : यद्यपि आपको अब किसी का डर नहीं रहा और बिलकुल आजाद हो गए हैं, मगर मैं आपको राय देती हूँ कि दो-तीन दिन अपनी आजादी को छिपाए रखिए, जिसमें पारसनाथ से मैं अपना काम बखूबी निकाल लूँ।

हरनंदन : खैर जैसा तुम कहोगी वैसा ही करूँगा, मगर इस बात को खूब समझ रखना कि आज से तुम हमारी हो चुकीं, तुम्हारा बिलकुल खर्च मैं अदा करूँगा और तुम्हें किसी के आगे हाथ फैलाने का मौका न दूँगा। आज से मैं तुम्हारा मुशाहरा मुकर्रर कर देता हूँ और तुम भी गैरों के लिए अपने घर का दरवाजा बंद कर दो।

बाँदी : जो कुछ आपका हुक्म होगा मैं वही करूँगी और जिस तरह रखोगे रहूँगी। मेरा तो कुछ ज्यादे खर्च नहीं है और न मुझे रुपए-पैसे की लालच ही है मगर क्या करूँ अम्मा के मिजाज से लाचार हूँ और उनका हाथ भी जरा शाह-खर्च है।

हरनंदन : तो हर्ज ही क्या है, जब रुपए-पैसे की कुछ कमी हो तो ऐसी बातों पर ध्यान देना चाहिए। जब तक मैं मौजूद हूँ तब तक किसी तरह की फिक्र तुम्हारे दिल में पैदा नहीं हो सकती और न तुम्हारा कोई शौक पूरा हुए बिना रह सकता है, अच्छा जरा अपनी अम्मा को तो बुला लाओ।

बाँदी : बहुत अच्छा, मैं खुद जाकर उन्हें अपने साथ ले आती हूँ।

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